भारत के सबसे उम्रदराज लॉ क्लर्क! मटन के प्रेमी, किराएदार से नहीं लेते पैसा, केस में फंसे तो बन गए झोलाछाप ‘वकील’

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नई दिल्ली: 90 साल की उम्र में भी एक शख्स कलकत्ता हाईकोर्ट में सबको प्रभावित कर रहा है. नाम है आलोक क्वोमर घोष, जो पेशे से एक लॉ क्लर्क हैं. आलोक क्वोमर घोष करीब छह दशकों से कलकत्ता हाईकोर्ट में लॉ क्लर्क के रूप में काम कर रहे हैं. आज आलोक क्वोमर घोष भारत के सबसे बुजुर्ग लॉ क्लर्क हैं, जिन्हें मटन खाना बेहद पसंद है और वह खुद को झोलाछाप वकील मानते हैं. वामपंथ की तरफ झुकाव रखने वाले आलोक अब भी रिटायरमेंट के बारे में नहीं सोच रहे हैं. आज के वक्त में जहां पैसों के लिए भाई-भाई में रिश्ते खराब हो जाते हैं, ऐसे वक्त में आलोक अपने किराएदारों से एक रुपया भी नहीं लेते. इनके लॉ क्लर्क बनने के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है.

आलोक घोष मूलत: पश्चिम बंगाल के हैं और इनका जन्म हावड़ा में 1933 में हुआ. 90 साल की उम्र होने के बाद भी घोष लगातार काम कर रहे हैं और संभवत: वह भारत के सबसे उम्रदराज लॉ क्लर्क हैं. उन्होंने 1956 में कोलकाता के बंग्लाबाशी कॉलेज से बीए किया है. वह प्रसिद्ध फुटबॉलर से शिक्षाविद बने रेवरेंड सुधीर कुमार चटर्जी से पढ़ चुके हैं. वह खुद को अकादमिक तौर पर वकील नहीं बल्कि बंगाली झोलाछाप डॉक्टर की तरह झोलाछाप वकील मानते हैं. आलोक घोष मजदूरी से लेकर कारखाना फैक्ट्री तक में काम कर चुके हैं. कुल मिलाकर उन्होंने जिंदगी के हर रंग को जी लिया है.

1960 से हैं लॉ क्लर्क
‘द लीफ लेट’ को दिए इंटरव्यू में वह वामपंथ की ओर अपने झुकाव पर गर्व करते हैं. ब्रह्म समाज से आने वाले घोष को मटन खाना पसंद है. हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि वह बीफ खाना भी पसंद करते हैं. वह धार्मिक कर्मकाण्ड में यकीन नहीं रखते हैं. स्वामी विवेकानंद के दूर के रिश्तेदार रहे सचितानंद बोस ही वह शख्स थे, जिन्हें आलोक घोष को लॉ क्लर्क के पेशे में लाने का श्रेय जाता है. वह 1960 से इस पेशे में हैं और 1995-96 के बाद आजतक कभी बंगाल के बाहर कदम तक नहीं रखा. अगर घोष कानूनी पचड़े में नहीं फंसते तो शायद ही कभी लॉ क्लर्क बन पाते. वह कहते हैं, ‘मैं एक क्रिमिनल केस में आरोपी था. वकील सत्येन्द्र बसु ने उस केस में मेरी मदद की थी. उन्होंने ही सुझाव दिया कि मैं यहां लॉ क्लर्क के रूप में काम करूं. तब मैं कालीघाट में एक फैक्ट्री कर्मचारी के रूप में काम करता था. सत्येन्द्र बसु हाईकोर्ट के साथ-साथ बैंकशाल कोर्ट में भी प्रैक्टिस करते थे और अंग्रेजी पर उनकी पकड़ बहुत अच्छी थी.’

किराएदार से नहीं लेते पैसा
वह कहते हैं, ‘मैं अपनी नौकरी से काफी प्यार करता हूं और यह मुझे बेहद पसंद है. पिछले कुछ दशकों में अदालतों के बदले स्वरूप की वह नर्क और स्वर्ग से तुलना करते हैं. नए वकीलों को वह अधिक अध्ययन की सलाह देते हैं. आलोक घोष अपने घर-परिवार के बारे में कहते हैं, ‘मेरा हावड़ा में एक घर है. किरायेदार पिछले 10-12 सालों से बिना कोई किराया दिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. मैं उन्हें बाहर नहीं फेंकना चाहता. मैं कम्युनिस्ट पार्टी का हिस्सा नहीं हूं, मगर मैं साम्यवाद के विचार में विश्वास करता हूं. मेरे कोई बच्चा नहीं है. इसलिए, मैंने किरायेदारों को अपना घर मुफ़्त में इस्तेमाल करने दिया. मुझे लगता है कि मैं अपने पिता के नाम पर एक ट्रस्ट खोलूंगा और ट्रस्ट ही संपत्ति की देखभाल करेगा.’

क्या है अब तक काम करने की वजह
अब तक काम करने की वजह के बारे में घोष कहते हैं कि उन्हें लोगों से मिलना अच्छा लगता है. लोगों से मिलकर उन्हें शांति मिलती है. इतना ही नहीं, वह इसके लिए पैसे को भी वजह मानते हैं. वह कहते हैं, ‘कभी मैं एक रुपए किलो मटन खाता था, आज 840 रुपए किलो मिलता है. उनका मानना है कि पैसा बहुत कुछ है और इस उम्र में भी मुझे पैसों की जरूरत होती है. इसलिए मैं अभी काम कर रहा हूं.’

Tags: Calcutta high court, Court, Kolkata, West bengal

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